पक्षाघात (लकवा) के लिए आहार

पक्षाघात एक ऐसा रोग है जो शरीर के किसी अंग को आंशिक अथवा पूर्ण रूपेण निष्क्रिय कर देता है । अंगों में रक्त का संचार तो रहता है] परन्तु इसकी गति बहुत ही क्षीण हो जाती है ।  प्रायः रोगी पराश्रित हो जाता है] वह अपने आप को अपाहिज तथा दूसरों की दया का पात्र समझने लगता है ।  प्रत्येक रोगी को यह समझ लेना चाहिये कि यह रोग सर्वथा असाध्य नहीं है । इसे कुशल चिकित्सक के निर्देशन में नियंत्रित किया जा सकता है तथा आहार-विहार पर ध्यान देकर इसके दुष्प्रभाव को एक सीमा  तक नियंत्रित किया जा सकता है ।

पक्षाघात जिन कारणों से होता है उनमें से एक कारण वात-उत्पादक भोज्य पदार्थ का अधिक सेवन भी है । वात-शामक पदार्थ की कमी होने से भी यह रोग होता है । इससे सिद्ध होता है कि खान-पान, आहार-विहार, डाइट-प्लान का कितना महत्व है ।

आहार विज्ञान में मात्र आहार के भौतिक घटकों का महत्व नहीं है] अपितु आहार की संयोजना] विविध प्रकार के आहार-द्रव्यों का सम्मिलन] आहारपाक या संस्कार] आहार की मात्रा एवं आहार-ग्रहण विधि तथा मानसिकता सभी अत्यंत महत्वपूर्ण है ।

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान] होम्योपैथी] आयुर्वेद आदि में लकवा के इलाज की कई विधियाँ बताई गयी हैं साथ ही आहार और दिनचर्या में बदलाव से भी लकवा के असर को कम किया जा सकता है।

पक्षाघात के रोगी को आहार देते समय ध्यान रखने योग्य बातें-

जब पक्षाघात के रोगी की देखभाल और आहारकी बात आती है, तो यह सुनिश्चित करें कि –

  • रोगी का आहार डॉक्टर द्वारा सुझाई गई आहार योजना के अनुरूप हो ।
  • रोगी का सावधानीपूर्वक निरक्षण करें कि क्या किसी विशेष प्रकार के भोजन से कोई असुविधा तो नहीं है।
  • यह सुनिश्चित करें कि रोगी को हमेशा ताजा भोजन मिले बासी या ठंडा भोजन न दिया जाये ।
  • रोगी को अधिक तीखे एवं गरीष्ठ भोजन न दें ।
  • रोगी को बाजार का बना रेडीमेट/फास्टफूड कदापि न दें उसे सदैव घर का बना भोजन ही दें ।

पक्षाघात रोगियों के लिये उचित आहार-

विशेषज्ञों के अनुसार पक्षाघात व्यक्ति को तरल पदार्थ] प्रोटिन और पोटेशियम की अधिक आवश्यकता होती है । पोटेशियम शरीर में तरल पदार्थ का संतुलन बनाये रखता है । यह मांसपेशियों का सुचारू संचालन निश्चित करता है। यह नर्व और मांसपेशियों के बीच संवाद स्थापित करता है और पोषक तत्वों को कोशिकाओं के अंदर और खराब तत्वों को कोशिकाओं से बाहर ले जाता है। मांसपेशियों के लिए पोटेशियम की इतनी अहमियत के कारण ही यह पक्षाघात के लिये महत्वपूर्ण है ।

     पक्षाघात रोगियों को कम मात्रा में ही कार्बोहाइड्रेट देनी चाहिये इसलिये पक्षाघात रोगियों के भोजन में ऐसे पदार्थ सम्मिलित हो जिसमें प्रोटिन एवं पोटेशियम की मात्रा तो अधिक हो किन्तु कार्बोहाइड्रेट मात्रा कम से कम हो । कार्बोहाइड्रेट युक्त पदार्थ का सेवन कम से कम करें । प्रोटिन युक्त पदार्थ देते समय भी हमें यह ध्यान रखना होगा कि शरीर में प्रोटीन तो खूब जाए] पर कार्बोहाइड्रेट कम जाए।

लकवा रोगियों के लिए सबसे अच्छा स्वस्थ भोजन उन्हें ठीक करने में प्रमुख भूमिका निभाता है। इसलिए हमें पक्षाघात रोगियों के लिये भोजन चार्ट तैयार करते समय यह जानना आवश्यक है कि उसे क्या दें और क्या न दें ।

तरल पदार्थ, पोटेशियम, प्रोटिन और कार्बोहाइड्रेट के आवश्यकता अनुसार पक्षाघात रोगियों को निम्नानुसार आहार देना चाहिये-

लकवा के मरीजों को ये दें –

पदार्थ का प्रकार

खाद्य पदार्थ

अनाज

गेहूं] जौ] बाजरा चोकर युक्त आटे की रोटी] पुराना चावल] दलिया आदि

दाल

मूंग दाल] कुलथ] उड़द आदि

सब्जियां

हरी सब्जियां (पालक] सहजन)] पत्ता गोभी आदि

फल

ब्रोकोली] अनार] फालसा] अंगूर] सेब] पपीता] संतरा] चेरी] तरबूज आदि

मांसाहार

झींगा मछली अंडा आदि

मेवा

बादाम] अखरोट] पिस्ता] काजू

बीज

सूरजमुखी का बीज] अलसी का बीज

पेय

प्रोटीन युक्त पेय] पनीर] दही

 

लकवा के मरीजों को ये ना दें –

पदार्थ का प्रकार

खाद्य पदार्थ

अनाज

नया अनाज] मैदे से बना पदार्थ

दाल

अरहर] मटर] चना

सब्जियां    

आलू] टमाटर] भिंडी] केला] करेला फूलगोभी] बैंगन] कटहल

फल

नींबू] जामुन

पेय

कोल्ड ड्रिंक्स] शराब

अन्य

अत्यधिक तेल-घी] तेज नमक-मिर्च]

विशेष रूप से-

फास्ट फूड] जंक फूड ठंडा भोजन

 

पक्षाघात रोगियों के लिये उचित आहार के विश्लेषण और अध्ययन के पश्चात हम मरीजों के लिये पूरे दिन का डाइट प्लान बनाते हैं-

पैरालेसिस के लिये डाइट प्लान चार्ट (पक्षाधात रोगियों के लिये आहार योजना)

क्र.

भोजन समय

रोंगियों को दी जाने योग्य भोज्य पदार्थ

 

1-

सुबह का नाश्ता

कप दूध] बिस्कुट] हल्का नमकीन] दलिया] पोहा] उपमा] सूजी] अंकुरित अनाज] 2 पतली रोटी] 1 कटोरी सब्जी] फलो का सलाद (सेब] पपीता] चेरी] तरबूज] आम] अनार] फालसा] अंगूर) में से जो रोगी ग्रहण कर सके ।

 

2-

दोपहर का भोजन

2&3 पतली रोटियां] 1 कटोरी चावल (मांड रहित)] 1 कटोरी हरी सब्जिया (उबली हुई)] 1 कटोरी दाल (पतली)] 1 प्लेट सलाद

3-

शाम का नाश्ता

1 कप चाय] 2&3 बिस्कुट] सब्जियों का सूप

 

4-

रात्रि का भोजन

2&3 पतली पतली रोटियां] 1 कटोरी हरी सब्जियां (रेशेदार)] 1 कटोरी दाल (पतली )

 

5-

सोने से 30 मिनट पहले

1 गिलास दूध अश्वगंधा चूर्ण साथ

 

 

भोजन ग्रहण करते समय ध्यान दें-

  • ताजा एवं हल्का गर्म भोजन करें।
  • भोजन धीरे धीरे शांत स्थान मे शांतिपूर्वक, सकारात्मक एवं खुश मन से करें।
  • तीन से चार बार भोजन अवश्य करें।
  • किसी भी समय का भोजन छोड़ें नहीं और अत्यधिक भोजन से परहेज करें।
  • यदि संभव हो तो हफ्ते मे एक बार व्रत करें।
  • अमाशय का एक तिहाई या एक चौथाई भाग खाली छोड़े अर्थात भूख से थोड़ा कम भोजन करें।
  • भोजन को अच्छी प्रकार से चबाकर एवं धीरे-धीरे खाएं।
  • भोजन करने के बाद 3&5 मिनट टहलें।
  • भोजन लेने के बाद थोड़ा टहलें और रात में सही समय पर नींद लें ।
  • प्रतिदिन दो बार ब्रश करें और नियमित रूप से जीभ की सफाई करें।

जब कोई व्यक्ति पक्षाघात से पीड़ित होता है, तो उनके शरीर की स्वच्छता और उनके प्रभावित अंगों की देखभाल करना एक चुनौती हो जाता है । रोगी अपने दैनिक कार्यो के लिये भी घर वालों पर निर्भर हो जाता है ।  ऐसे में उनके देखभाल के लिये हमें कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिये-

  • रोगी मानसीक रूप प्रबल बनायें उन्हें आपके किसी भी बात अथवा क्रियाकलाप से ठेस न पहुँचे ।
  • रोगी यदि चलने-फिरने में अक्षम हो तो रोगी को प्रतिदिन हर दो घंटे में उनके स्थिति में परिवर्तन कराते रहें जिससे लगातार लेटे रहने के कारण बेड़सोर (बिस्तर के कारण जख्म) न बन जायें । यदि रोगी स्वयं अपनी स्थिति बदलने में अक्षम हो तो उसे दायें-बायें घूमने में सहयोग करें । लंबे समय तक लगातार लेटे न रहने कुछ समय अंतराल पश्चात बैठने की स्थिति में रखें ।
  • सही समय पर रोगी को दवा एवं सही समय पर भोजन दें ।

पक्षाघात की एक अनुभूत चिकित्सा-

डॉ. सत्यपाल गोयल] पी.एच.डी. आयुर्वेदरत्न के अनुसार-एक किलो सरसो का शुद्ध तेल] सौ ग्राम लहसुन की गीरी या गुदा] पचीस ग्राम अजवाइन तथा दस लौंग लेकर साफ कड़ाही में इन्हें डालकर तबतक उबालें जबतक लहसुन की गीरी जलकर काली-एकदम काली न हो जाये । फिर इसे अच्छे से छानकर तेल को साफ पात्र में एकत्रित कर लें इस तेल से प्रतिदिन लकवाग्रस्त अंगों की हल्के हाथों से अच्छे से मालिश करें साथ ही जिस अंग में लकवा का प्रभाव है उसके विपरित अंगों का भी इसी प्रकार मालिश करें] यदि बायें अंग पर लकवा है तो दायें अंग को भी मालिश करें । ऐसा नियमित 90 दिनों तक किया जाये तो पक्षाघात के प्रभाव को 90 से 99 प्रतिशत ठीक किया जा सकता है ।

पक्षघात के रोगियों की समस्याओं को कम से कम करने में उनके प्रियजनों की अहम भूमिका होती है] क्योंकि रोगी आंशिक या पूर्णरूपेण उन्हीं पर निर्भर हो जाता है ।  अतः रोगी के परिवार जनों की उत्तरदायित्व अहम है] उन्हें चाहिये रोगी को मानसिक और शारीरिक सहयोग प्रदान करते हुये उनके ठीक होने का सतत प्रयास करते रहना चाहिये । उनके रहन-सहन] शारीरिक स्वच्छता] अहार-विहार] चिंतन-मनन का समुचित ध्यान रखें ।

-रमेश कुमार चौहान