Navajaat Shishu Kee Dekhabhaal

नवजात शिशु की देखभाल

शिशु मानव जाति का साररूपी धन है ।  यह राष्ट्र की सर्वोत्कृष्ट सम्पत्ति है ।  इसके लालन-पालन में बहुत सतर्क रहने की जरूरत है । आज के बच्चे कल के कर्णधार हैं ।  इन्हीं पर देश, समाज, की उन्नति निर्भर है ।  अतः इनकी प्रसन्नता, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं विचारधारा आदि का विशेष ध्यान रखना चाहिये ।

सभी नवजात शिशुओं में बीमारी के ज़ोखिम को कम और उनकी वृद्धि बढ़ाने और विकास के लिए नैसर्गिक आवश्यकता, नवजात शिशु देखभाल कहलाती है। जन्म के समय बच्चे की मूलभूत ज़रूरत वात्सल्य (माँ की गरमाहट), सामान्य श्वास, माँ का दूध और संक्रमण की रोकथाम करना नवजात शिशु की देखभाल की संकल्पना और आवश्यकता है। ये मूलभूत ज़रूरते दर्शाती है, कि शिशु की निर्भरता पूरी तरह से उसकी माँ और अन्य देखभाल करने वालों पर निर्भर होता है। इसलिए जन्म के तुरंत बाद सभी शिशुओं को उचित देखभाल प्रदान करना महत्वपूर्ण है।

जब बच्चा माँ के गर्भ में रहता है तब उसके षरीर का पालन-पोषण माँ के आहार से होता है ।  इसलिये जो गर्भवती स़्त्री पौष्टिक आहार लेती है, वह स्वस्थ, सुडौल और नीरोग शिशु को जन्म देती है ।  जन्म के बाद शिशु स्वस्थ, नीरोग बना रहे और शिशु का समुचित विकास हो सके इसके लिये माता को प्रसव के बाद कम-से-कम छः माह तक  अपने खान-पान और आहार का विशेष ध्यान रखना चाहिये ।

नवजात शिशु की देखभाल करना साफ तौर पर एक चुनौती है खास तौर पर जब यह आपके साथ पहली बार होता है। अतः, अपने नवजात शिशु की देखभाल करते समय इन बातों पर विशेष ध्यान दें-

1. शिशु को दूध पिलाना-

शिशु का आहार माँ के दूध से शुरू होता है । प्रकृति द्वारा माँ को दिया गया अमूल्य उपहार दूध है ।  माँ के दूध में शिशु के लिये आवश्यक पोषक तत्व दूध से बढ़कर संसार में बच्चे के लिये अन्य कोई खाद्य-पदार्थ हो ही नहीं सकता । आयुर्वेद के अनुसार-

पयोऽमृतरसं पीत्वा कुमारस्ते शुभानने ।
दीर्घमायुरवाप्रोतु देवा प्राश्यामृतं तथा ।।

इसका अर्थ यह है कि जिस प्रकार देवता अमृत पान करके दीर्घायु हुये ठीक उसी प्रकार षिषु अपने माँ के दूध के सेवन करने से दीर्घायु होता है ।
प्रसव के बाद माता के स्तनों से गाढ़ा पीला दूध जिसमें कोलेस्ट्रम होता है, निकलता है । इसे शिशु को अवश्य पिलाना चाहिये इससे शिशु की रोग-निरोधक क्षमता बढ़ेगी और शिशु स्वस्थ रहेगा । ‘इंडियन रेडक्रास सोसाइटी’ द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘चाइल्ड वेलफेयर’ के अनुसार शिशुओं को निम्नानुसार दूध पिलाना चाहिये-

1. पहले सप्ताह में- दिन में प्रति 2 घंटे पर एवं रात में दो बार । हर बार 1 से 2 औंस तक दूध पीलाना चाहिये ।

2. दूसरे सप्ताह में – दिन में प्रति 2 घंटे पर एवं रात में दो बार । हर बार 2 से 2.5 औंस तक दूध पीलाना चाहिये ।

3. तीसरे सप्ताह में – दिन में प्रति 2 घंटे पर एवं रात में दो बार । हर बार 2.5 से 3 औंस तक दूध पीलाना चाहिये ।

4. चौथे से आठवें सप्ताह में – दिन में प्रति 2.30 घंटे पर एवं रात में दो बार । हर बार 3 से 4 औंस तक दूध पीलाना चाहिये ।

5. तीसरे महिने में- दिन में प्रति 2.30 घंटे पर एवं रात में दो बार । हर बार 4 से 5 औंस तक दूध पीलाना चाहिये ।

6. चौथे माह में- दिन में प्रति 3 घंटे पर एवं रात में एक बार । हर बार 5 से 5.5 औंस तक दूध पीलाना चाहिये ।

7. पांचवें माह में- दिन में प्रति 3 घंटे पर एवं रात में एक बार । हर बार 5.6 से 6 औंस तक दूध पीलाना चाहिये ।

8. छः से दस माह तक- दिन में प्रति 3 घंटे पर एवं रात में एक बार । हर बार 6 से 8 औंस तक दूध पीलाना चाहिये ।

किन्तु माताओं को निम्न स्थितियों में दूध नहीं पिलाना चाहिये-

1. यदि स्त्री कैंसर जैसे भयंकर रोग से पीडीत हो ।

2. किसी कारण स्तन में दर्द अथवा सुजन हो ं

3. यदि स्त्री दुबारा गर्भवती हो ।

अलग से दूध पिलाना- यदि माँ का दूध नहीं आ रहा हो अथवा उपरोक्त कारणों से वह दूध पिलाने में अक्षम हो तो शिशु को गाय का दूध बोतल के स्थान पर कटोरी चम्मच से पिलाना चाहिये । बोतल की सफाई अच्छे से नहीं हो पाती इसलिये इन्फेक्शन होनी की आशंका रहती है ।

2. शिशु का टीकाकरण-

घातक बीमारी के विरुद्ध रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने के लिए दी जाने वाली दवा की प्रक्रिया को टीकाकरण (वैक्सीनेशन) कहते हैं। इसे इंजेक्शन के रूप में या मुंह में सीधा डालकर दिया जाता है।  वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेन के अनुसार शिशु को निम्नानुसार टीके लगवाने चाहिये-

1. जन्म के समय- शिशु के जन्म के समय बी.सी.जी., ओ.पी वी और पोलियो विरोधी हेपेटाइटिस-बी के टीके  देना चाहिये ।

2. डेढ़ माह की आयु में-शिशु के के डेढ़ माह की आयु में त्रिगुणी टीके (डी.पी.टी.) का पहला डोज और ओ.पी वी और पोलियो विरोधी हेपेटाइटिस-बी के टीके का दूसरा डोज दिलवाना चाहिये ।

3. ढाई माह की आयु में- शिशु के के ढाई माह की आयु में त्रिगुणी टीके (डी.पी.टी.) का दूसरा डोज और ओ.पी वी और पोलियो विरोधी हेपेटाइटिस-बी के टीके का तीसरा डोज दिलवाना चाहिये ।

4. साढ़े तीन माह की आयु में- शिशु के के साढ़े तीन माह की आयु में त्रिगुणी टीके (डी.पी.टी.) का तीसरा डोज और ओ.पी वी और पोलियो विरोधी हेपेटाइटिस-बी के टीके का चौथा डोज दिलवाना चाहिये ।

5. 9 माह से 12 माह तक-इस आयु काल खसरे का पहला टीका एवं विटामिन-ए का पहला खुराक दिलवाना चाहिये ।

6. 16 से 24 माह तक- इस आयु काल में डी.पी.टी. प्रथम बुस्टर, पोलियो बुस्टर एवं खसरे का दूसरा डोज दिलवाना चाहिये ।

7. 5 वर्ष तक- इस आयु काल में प्रति 6 माह के अंतराल में विटामिन-ए का खुराक दिलवाना चाहिये ।

8. 5 वर्ष पर- 5 वर्ष की आयु काल में डी.पी.टी. का दूसरा बुस्टर दिलवाना चाहिये ।

शिशुओं का दुग्धपान एवं टीकाकरण ये दोनों शिशु देखभाल की प्राथमिक आवश्यकता है, इसके अतिरिक्त निम्न बातों का भी ध्यान रखना चाहिये-

1. शिशु का शयन-स्वस्थ बच्चे के लिये नींद की आवश्यकता एक माह तक 22 घंटा तक होती है जो औसतन हर माह एक-एक घंटा कम होती जाती है । इसलिये बच्चों के सोने के लिये  ऐसे स्थान का चयन करे जो शांत, स्वच्छ और हवदार हो । शिशु को अलग से सुलाने की अपेक्षा माँ के साथ ही सुलाना उचित होता है । शिशु का बिछौना नर्म होनी चाहिये । शिशु की आँखो पर तेज प्रकाश नहीं पड़ना चाहिये । शिशु को मुँह ढककर नहीं सुलाना चाहिये । शिशु को नींद से एकाएक नहीं जगाना चाहिये ।

2. बच्चे का रोना- बच्चों के रोने पर यह जरूरी नहीं है कि उसे तकलीफ है। रोना बच्चे के लिए एक अच्छा अभ्यास भी है। उसके रोने पर उसे मारें या डाँटें नहीं, बल्कि उसे प्यार से चुप कराएँ। यदि ज्यादा रोए तो डॉक्टर को दिखाएँ। सामान्यतः बच्चों के पेट में तकलीफ होने से भी वह रोते हैं।

3. बच्चे के वस्त्र एवं उनकी सफाई- बच्चे एक दिन में कई कपड़े खराब करते हैं, इसलिए उनके कपड़े नर्म होने चाहिए। उनके कपड़ों को धोने के लिए अच्छे सॉफ्ट डिटर्जेंट का प्रयोग करें, जिससे उनकी त्वचा को कोई नुकसान न हो।

4. बच्चे की मालिश- मालिश सावधानीपूर्ण की जानी चाहिए। मालिश से बच्चों का शारीरिक विकास होता है। मालिश जैतून का तेल, बादाम का तेल या बेबी ऑइल से करें। मालिश ज्यादा भारी हाथों से नहीं, हल्के हाथों से करें।

5. शिशु को नहलाना- नवजात शिशु को नहलाने के लिए पहले टब में गुनगुना पानी भरें। ध्यान रखिए पानी गर्म न हो। फिर शिशु को उसमें बिठाइए जब तक बच्चा बैठने लायक नहीं होता, उसकी गर्दन एवं पीछे की तरफ हाथों से सहारा दीजिए। शिशु को टब में बिठाने के बाद उसमें ऊपर से पानी न भरें। ठंड के दिनों में शिशु को प्रतिदिन नहलाना आवश्यक नहीं है। नहलाने में नर्म साबुन प्रयोग करें।

6. शिशुओं के कॉस्मेटिक्स- शिशु के कॉस्मेटिक्स के लिए सारी चीजें ऐसी हों जो उसकी त्वचा को हानि न पहुँचाए। जैसे बेबी सोप, बेबी ऑइल, बेबी शैंपू, बेबी पावडर, क्रीम इत्यादि। सोप एवं शैंपू का इस्तेमाल करते समय ध्यान रखें यह शिशु की आँखों में न जाए।

7. आपके बच्चे का संतुलित आहार- माँ का दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम है। इसके अलावा गाय का दूध पिला सकते हैं। बच्चे को मेश किया केला, उबला और सेवफल का गूदा, दूसरे फलों का जूस, दलिया, चावल और शकर, नमक, पानी का मिश्रण आदि दिया जाना चाहिए। यह आहार बच्चे के 6-7 महीने का होने पर शुरू करें। दाल का पानी भी लाभदायक होता है। शक्कर, पानी व नमक का मिश्रण बच्चे को डायरिया से बचाता है।

शिशु की देखभाल के प्रति लोगों को जागरूक रखने के लिये देश में प्रतिवर्ष 15 से 21 नवंबर तक ‘शिशु देखभाल सप्ताह’ मनाया जाता है। इस सप्ताह को मानने का उद्देश्य बच्चे की उत्तरजीविता और विकास के लिए नवजात शिशु की देखभाल के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।

Please share your details and
we will get back to you with in a 5 mins



Please share your details and
we will get back to you with in a 5 mins



Share:

More Posts

The Future of Home Healthcare

The Future of Home Healthcare: How Technology is Revolutionizing Patient Care As the global population ages, the demand for home healthcare services is rising significantly.